इलाहाबाद उच्च न्यायालय के परिसर में संभवतः कुछ लम्बा गेम चल रहा है। क्लिप को काट कर देश में नफ़रत फैलाने वाले मुहम्मद जुबैर के केस में दो बार तो बेंच स्वयं हट चुकी है। कारण आज तक नहीं बताया गया। फिर जब पिछली सुनवाई हुई तो बीच सुनवाई में से जज पाँच मिनट के लिए उठ गए। क्यों उठे, भगवान जानें। वापस आए तो उनके प्रश्न को टोन और विषय बदल गया था।
दिनांक 6 जनवरी सुनवाई का समय दस बजे का था। जब बेंच को पता चला कि डा उदिता त्यागी भी उपस्थित हैं, तो समय किसी कारण से दो बजे का कर दिया गया। वापस सब होटल आ गए। तब थोड़ी देर बाद दिल्ली में रह रहे डा त्यागी के वकील को कहा गया कि सुनवाई 11 बजे से होगी। वहाँ से उदिता जी को बताया गया तो वो कोर्ट परिसर वापस गईं। वहाँ समय से पहुँची तो पता चला कि मुहम्मद जुबैर का वकील अभी आया नहीं है, दस मिनट में आएगा।
दस मिनट से एक घंटा हो गया तब वो लगभग 12 बजे आया। आने के बाद कहा गया कि उन्हें दस दिन का समय चाहिए, वो काउंटर फाइल करना चाहते हैं। समय दे दिया गया। संभव है, इलाहाबाद हाईकोर्ट में यह सब सामान्य बातें हों कि वहाँ ऐसे ही कार्य होता है। हमें यह समझ में नहीं आता कि जब नई तारीख ही लेनी थी तो दस से दो, दो से ग्यारह, ग्यारह से बारह करने की क्या आवश्यकता थी?
क्या यह जानबूझकर ‘प्रोसेस इज पनिशमेंट’ का प्रदर्शन नहीं हो रहा? एक व्यक्ति ट्वीट कर के दंगाई भीड़ भेज देता है मंदिर पर। भीतर में ट्रैप्ड महिलाएँ, उस रात्रि को जीवन के सबसे भयावह समय होने की संभावना में, जिहादियों की भीड़ का सामना करने के उपाय ढूँढती है, और हमारी न्यायपालिका ऐसे व्यक्ति पर कार्रवाई करने में इतना विलम्ब करती है!
वही महिला दिल्ली से बार-बार इलाहाबाद जाती है कि संभव है इस बार निर्णय हो जाए! सनद रहे कि महिला नेत्री भाजपा से संबद्ध है। वही भाजपा जिसकी सरकार राज्य और केन्द्र में है। और वही यहाँ न्यायिक उपेक्षा सह रही है। मैं यह केवल इसलिए बता रहा हूँ कि किसी को यह न लगे कि यूपी में होने के कारण, पार्टी में होने के कारण, हमारे पक्ष को किसी प्रकार का लाभ मिल रहा है।
हमने यह भी देखा कि बार-बार इनकी टीम विलम्ब करा रही थी ताकि केस किसी तरह सुप्रीम कोर्ट में पहुँच जाए कि हाई कोर्ट में बिना बात की देरी की जा रही है। उत्तर प्रदेश पुलिस व गाजियाबाद पुलिस इसी उपेक्षा का शिकार है और अपनी लड़ाई वो भी इस तंत्र से लड़ रहे हैं। पुलिस के पास पर्याप्त साक्ष्य, आरोपित के पास दंगाई भीड़ भेजने के लिए ट्वीट करने का मोटिवेशन, यति जी को ले कर उसकी घृणा के थ्रेड आदि हैं।
सब हों, पर जज स्वयं हटने लगें, सुनवाई के बीच से उठ जाएँ, चार बार समय बदला जाए और आरोपित के वकील को उसके हिसाब से समय मिलने लगे, तब समझ में आने लगता है कि चल क्या रहा है। फिर भी, हम इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी इसे परिणाम तक पहुँचाने को प्रतिबद्ध हैं। ऐसे लोग समाज के लिए खतरा हैं जो बैंग्लोर में बैठ कर उत्तर प्रदेश के मंदिर को तोड़ने, वहाँ की महिलाओं का रेप करने, हिन्दुओं का नरसंहार करने को मंदिर से पचास किलोमीटर दूर से भीड़ भेजने की क्षमता रखते हैं।
लेखक: अजीत भारती, पत्रकार