तीर्थराज प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है. महाकुंभ में सनातनी संस्कृति की ऐसी अनुपम छठा बिखरी हुई है, जिसकी खुशबू से संपूर्ण विश्व महक रहा है. सनातन पंरपरा के वाहक करोंड़ों श्रद्धालु मोक्ष की कामना से संगम में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं. देश-दुनिया के कोने-कोने से आये साधु, संत और श्रद्धालु भारती की सांस्कृतिक विविधता के साथ-साथ सनातन आस्था की आध्यात्मिक ऊर्जा से विश्व भर का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर रहे हैं.
ऐसे ही एक हैं इंग्लैंड से आए हुए जैकब जो अब जय किशन सरस्वती बन चुके हैं. जैकब ने पहली बार महाकुंभ में पहुंचकर पावन जलधारा में डुबकी लगाई है. इंग्लैंड से 2013 में भारत आए जैकब को अब जय किशन सरस्वती कहा जाता है. जैकब अब अंग्रेज नहीं सनातनी हैं. जैकब ने सनातन धर्म ग्रहण कर लिया है. उन्हें जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर उमाकांतानंद ने दीक्षा दी है.
महाकुंभ पहुंचे जय किशन ने बताया कि वह इंग्लैंड में मैनचेस्टर के रहने वाले है लेकिन सनातन संस्कृति और उसकी आध्यात्मिक शक्ति से बहुत प्रभावित हैं. उन्होंने कहा कि वह लगभग 10 वर्षों से भारत में ही रह रहे हैं. काशी, हरिद्वार, ऋषिकेष, मथुरा, वृंदावन, उज्जैन समेत पुरी जैसी धार्मिक नगरी की यात्रा की है. महाकुंभ में पहली बार आए हैं.
जय किशन सरस्वती ने बताया कि वे मैनचेस्टर से कला स्नातक हैं. निजी कंपनी में कार्य कर रहे थे. इसी दौरान भगवत गीता के अध्ययन से पूरा जीवन बदल गया. हिंदी और संस्कृत भाषा भी सीखी. इस दौरान उन्हें सनातन संस्कृति इसे इतना लगाव हुआ कि उन्होंने ईसाईयत छोड़ दी और भगवा ओढ़कर जय श्रीराम का उद्घोष किया और सनातनी बन गए.
जैकब उर्फ़ जय किशन सरस्वती अब स्वामी उमाकांतानंद के साथ पूरे देश में प्रवास और भ्रमण करते हैं. प्रयागराज के महाकुंभ को लेकर वह कहते हैं यह दिव्य है, भव्य है, ऐसा दुनिया में कुछ नहीं है. इस बार मकर संक्रांति पर जूना अखाड़ा के साथ संगम में अमृत स्नान करने वाले जय किशन सरस्वती मानते हैं कि महाकुंभ अध्यात्म का ऐसा केंद्र है, जहां आने के बाद फिर कुछ शेष नहीं रहता है.