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‘ज्ञानवापी पर जिहादी टोपी नहीं चलेगी’… 2 अप्रैल को नहीं हुई श्रृंगार गौरी की पूजा तो कारसेवा ?

ज्ञानवापी परिसर को लेकर सनातनी हिंदुओं का संघर्ष एक बार फिर चर्चा में है। विश्व वैदिक सनातन संघ के पदाधिकारियों ने वाराणसी के जिला अधिकारी और पुलिस कमिश्नर को एक भावनात्मक और दृढ़ संकल्प से भरा पत्र लिखा है, जिसमें 2 अप्रैल 2025, चैत्र चतुर्थी नवरात्रि को ज्ञानवापी परिसर के अंदर माता श्रृंगार गौरी और अन्य देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के लिए प्रवेश की अनुमति मांगी गई है।

पत्र में स्पष्ट किया गया है कि यदि प्रशासन कोई ठोस कदम नहीं उठाता, तो सनातनी समाज अपने अधिकारों के लिए बड़ा आंदोलन करने से पीछे नहीं हटेगा। उन्होंने कहा कि यह उनका धार्मिक और संवैधानिक अधिकार है और वे इसके लिए संघर्षरत रहेंगे।

कारसेवा की परंपरा

विश्व वैदिक सनातन संघ की तरफ से कहा गया है कि इतिहास गवाह है कि जब भी सनातनी हिंदू समाज को न्याय नहीं मिला, तब उन्होंने अपने धार्मिक स्थलों की पुनर्स्थापना के लिए कारसेवा की परंपरा को आगे बढ़ाया है। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां लाखों रामभक्तों ने अपने आराध्य की पुनर्स्थापना के लिए आंदोलन किया और अंततः न्याय प्राप्त हुआ। यदि ज्ञानवापी मामले में भी प्रशासन एवं न्यायालय से उचित निर्णय नहीं मिलता है, तो हिंदू समाज के पास कारसेवा का विकल्प खुला रहेगा।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और दावा

पत्र में कहा गया है कि ज्ञानवापी परिसर भगवान शिव के प्रमुख ज्योतिर्लिंग आदि विश्वेश्वर का मूल स्थान है, जिसे मुगल शासक औरंगजेब के फरमान पर क्षतिग्रस्त किया गया था। फिर भी, सनातनी हिंदुओं का इस स्थल पर अनादि काल से स्वामित्व रहा है। 1993 तक परिसर में भगवान शिव, माता श्रृंगार गौरी, गणेश जी और अन्य देवी-देवताओं की पूजा निर्बाध रूप से होती रही। उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रयागराज उच्च न्यायालय में दायर एक रिवीजन याचिका में इस तथ्य की पुष्टि की है। इसी आधार पर जिला न्यायालय वाराणसी ने परिसर के भूतल तहखाने में पूजा का आदेश दिया, जिसके बाद प्रशासन ने वहां पूजा शुरू करवा दी, जो आज भी जारी है।

हालांकि, पश्चिमी भाग में स्थित श्रृंगार मंडप में माता श्रृंगार गौरी की पूजा 1993 में प्रशासन द्वारा बिना औपचारिक आदेश के बैरिकेटिंग कर बंद कर दी गई। तब से भक्त हर वर्ष बैरिकेट के बाहर प्रतीकात्मक पूजा करते आ रहे हैं। इस वर्ष 2 अप्रैल को भी यह पूजा प्रस्तावित है, लेकिन इस बार श्रद्धालु परिसर के अंदर पूजा करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।

न्यायिक संघर्ष और चुनौतियां

ज्ञानवापी को सनातनियों को सौंपने और वहां निर्बाध पूजा की मांग को लेकर कई याचिकाएं न्यायालय में चल रही हैं। प्रमुख मुकदमा 01/2023 (712/2022) भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान द्वारा श्रीमती किरन सिंह व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य में मुख्य वादी श्रीमती किरन सिंह “विसेन” और उनकी धर्म पुत्री श्रीमती राखी सिंह हैं। पत्र में आरोप है कि वाराणसी के जिला जज पिछले एक वर्ष से किसी दबाव, भय या लालच के कारण इस मामले में निर्णय लेने में असमर्थ हैं, जिससे सनातनियों को न्याय नहीं मिल रहा।

प्रशासन से अपील

पत्र में प्रशासन से इस प्रकरण को गंभीरता से लेने और 2 अप्रैल को परिसर के अंदर पूजा का मार्ग स्थायी रूप से खोलने की मांग की गई है। लेखिका ने इसे सनातनियों की आस्था और अधिकारों की पुकार बताते हुए कहा, “अब समय आ गया है कि ज्ञानवापी पर ‘जिहादी टोपी’ हटाकर ‘भगवा’ लहराया जाए।”

वाराणसी के लिए प्रस्थान की योजना

आंदोलन से जुड़े पदाधिकारियों और श्रद्धालुओं का दल 1 अप्रैल 2025 को प्रातः 10:00 बजे गोंडा जिले से वाराणसी के लिए रवाना होगा। इस यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं में भारी उत्साह देखा जा रहा है।

प्रशासन और सरकार के समक्ष चुनौतियाँ

इस पत्र के बाद प्रशासन पर बड़ा दबाव बन सकता है कि वह इस धार्मिक मांग पर उचित निर्णय ले। यदि प्रशासन 2 अप्रैल को पूजा की अनुमति देता है, तो यह एक बड़ा ऐतिहासिक कदम होगा। वहीं, यदि अनुमति नहीं दी जाती, तो आंदोलन और विरोध प्रदर्शन की संभावना भी बन सकती है।

अब देखना यह होगा कि प्रशासन और सरकार इस पर क्या निर्णय लेते हैं। क्या सनातनी हिंदू समाज को ज्ञानवापी परिसर में पुनः पूजा-अर्चना करने की अनुमति मिलेगी, या फिर उन्हें अपने अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखना होगा?

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