नेपाल इस समय अपने इतिहास के सबसे भीषण राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है। राजधानी काठमांडू और अन्य प्रमुख शहरों में हिंसक प्रदर्शनों ने हालात को पूरी तरह अस्थिर कर दिया है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद भी गुस्से में उग्र भीड़ थमी नहीं है।
सोशल मीडिया बैन के खिलाफ शुरू हुआ यह आंदोलन देखते-ही-देखते वामपंथी सरकार और उनके नेतृत्व के खिलाफ सीधा विद्रोह बन गया। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन, सिंह दरबार (जहां सरकार और मंत्रियों के कार्यालय स्थित हैं) और नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय तक पर कब्जा कर लिया है। राजधानी की प्रमुख सरकारी इमारतें आगजनी और हिंसक उपद्रव की चपेट में हैं।
बड़े नेता बने निशाना
हिंसा की चपेट में केवल सरकारी भवन ही नहीं आए बल्कि कई बड़े नेताओं पर भी भीड़ ने जानलेवा हमले किए।
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पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा पर उनके ही निवास में धावा बोलकर हमला किया गया।
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वित्त मंत्री विष्णु पोडौल को काठमांडू की सड़कों पर दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल है।
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नेपाल की विदेश मंत्री आरजू देउबा को पीटा गया
- पूर्व PM प्रचंड के घर पर हमला किया गया
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यहां तक कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के निजी आवासों पर भी भीड़ ने आगजनी और तोड़फोड़ की।
जानकारों का मानना है कि इस पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन नेपाल के हाल के इतिहास में पहली बार देखने को मिले हैं। अब तक 20 लोगों की मौत और करीब 400 लोगों के घायल होने की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है।
ओली का इस्तीफा
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने उग्र माहौल और बेकाबू होती भीड़ के दबाव में इस्तीफा दे दिया। हालात इतने बिगड़ गए कि सेना को हस्तक्षेप करना पड़ा और हेलिकॉप्टर ऑपरेशन द्वारा मंत्रियों तथा नेताओं को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया। यह पहला मौका है जब नेपाल की सुरक्षा व्यवस्था जनाक्रोश के सामने बेदम दिखाई दी।
वामपंथ के खिलाफ जनाक्रोश
यह बगावत केवल सोशल मीडिया बैन तक सीमित नहीं रही। आंदोलन ने वामपंथी सरकार और वामपंथी दलों के पूरे राजनीतिक ढांचे को चुनौती दी है। प्रदर्शनकारियों ने खुलेआम कहा है कि संसद को तुरंत भंग किया जाए और ऐसी अंतरिम सरकार का गठन हो जो वामपंथ से मुक्त होकर राष्ट्रवादी और पारंपरिक सांस्कृतिक मूल्यों को मानने वाली हो।
भीड़ ने कई स्थानों पर वामपंथी दलों के झंडों को उखाड़कर फेंक दिया और कार्यालयों को आग के हवाले कर दिया। यह संकेत है कि वामपंथी राजनीति अब नेपाल में तेजी से ज़मीन खो रही है।
“Gen-Z” का विद्रोह
काठमांडू के मेयर बालेंदु शाह ने इस आंदोलन को नया रूप देते हुए कहा कि यह पूरी तरह “Gen-Z” का विद्रोह है। उन्होंने आह्वान किया कि नई पीढ़ी को अब नेतृत्व संभालना होगा। उनका कहना था कि ओली जैसे “हत्यारे” का इस्तीफा युवाओं की जीत है, लेकिन यह लड़ाई यहीं खत्म नहीं होती। उन्होंने सेना प्रमुख से भी बातचीत की राह खोली, मगर शर्त रखी कि उससे पहले संसद का विघटन जरूरी है।
नेपाल का भविष्य – हिंदू राष्ट्रवाद की ओर?
नेपाल में तेजी से बदलते हालात संकेत देते हैं कि यह विद्रोह केवल सरकार-विरोधी नहीं बल्कि विचारधारात्मक भी है। 2008 में राजतंत्र के अंत और नेपाल के धर्मनिरपेक्ष घोषित होने के बाद से वामपंथी दलों का दबदबा रहा। लेकिन अब व्यापक जनाक्रोश ने इस सत्ता को बुनियाद तक हिला दिया है।
विशेषज्ञ मान रहे हैं कि आने वाले समय में नेपाल में नई राजनीतिक धारा उभरेगी जिसमें सांस्कृतिक पुनर्जागरण और हिंदू राष्ट्रवाद की झलक होगी। नेपाल पहले से ही भारत के साथ धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से गहरा जुड़ाव रखता है। आंदोलन के दौरान भीड़ द्वारा लगाए गए नारों में राम, शिव और हिंदू राष्ट्र की पुकार सुनाई दी।
इससे यह संकेत मिलता है कि नेपाल अब वामपंथी सत्ता से मुक्त होकर संभवतः हिंदू राष्ट्र की ओर वापसी कर सकता है।