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मोदी जी को ट्रंप की फ्रेंड रिक्वेस्ट: झुकती है दुनिया, झुकाने वाला चाहिए

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अभय प्रताप सिंह
अमेरिका-भारत संबंधों में वर्तमान नरमी मोदी की ‘भारत-प्रथम’ नीति की शक्ति और नीति-नेतृत्व का प्रत्यक्ष परिणाम है। अमेरिकी पक्ष को यह स्वीकार करना पड़ेगा कि भारत अब न तो दबता है, न झुकता है; बल्कि वह निर्णय-क्षमता, सम्मान और साझेदारी की समृद्ध परंपरा पर टिक कर नया वैश्विक स्थान बना रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के जटिल खेल में भारत आज एक ऐसे मजबूत खिलाड़ी के रूप में उभरा है, जहां उसकी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने न केवल वैश्विक चुनौतियों का सामना किया है, बल्कि उन्हें अवसरों में बदलकर अपनी स्थिति को और मजबूत बनाया है। हाल ही में अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव के बीच उभरे सकारात्मक संकेत इस बात का प्रमाण हैं कि मोदी की ‘भारत प्रथम’ की नीति कितनी प्रभावी सिद्ध हो रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप, जो कुछ महीने पहले भारत पर भारी टैरिफ लगाकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे, अब खुद प्रधानमंत्री मोदी को ‘बहुत अच्छा मित्र’ बताते हुए व्यापार वार्ता को आगे बढ़ाने की उत्सुकता जता रहे हैं। यह बदलाव न केवल भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत का परिणाम है, बल्कि मोदी के निर्णायक नेतृत्व का भी, जो किसी भी बाहरी दबाव के आगे झुकने से इनकार करता है।

अमेरिका के साथ संबंधों में आई ठंडक अब पिघल रही है। लेकिन इससे पहले, हमें उस पृष्ठभूमि को समझना होगा जो इस बदलाव की वजह बनी। ट्रंप प्रशासन ने अगस्त 2025 में भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया, जिसमें रूस से तेल खरीद पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत जुर्माना शामिल था। यह कदम अमेरिका की उस रणनीति का हिस्सा था, जिसके तहत वह रूस की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए उसके तेल निर्यात पर अंकुश लगाना चाहता था। ट्रंप ने भारत को ‘डेड इकोनॉमी’ तक कह डाला था और व्यापारिक घाटे का हवाला देकर आलोचना की थी। लेकिन क्या यह दबाव भारत को झुका सका? बिलकुल नहीं। प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों और राष्ट्रीय हितों से कोई समझौता नहीं करेगा। वित्त मंत्री ने भी साफ कहा कि भारत रूसी तेल खरीदना जारी रखेगा, क्योंकि यह हमारी अर्थव्यवस्था के लिए किफायती और आवश्यक है।

ट्रंप के तीखे बयान और बढ़े टैरिफ के बावजूद भारत ने सिद्ध कर दिया कि किसी मजबूरी या दबाव के आगे झुकना भारत की प्रकृति नहीं है। भारत ने यह भी संकेत दिया कि बहुपक्षीय मंचों पर भागीदारी और संबंधों की मजबूती भारत की प्राथमिकता बनी रहेगी, चाहे पश्चिम की नाराजगी ही क्यों न हो। यह दृढ़ता मोदी की विदेश नीति का मूल मंत्र है ‘भारत प्रथम’। उन्होंने कभी भी अंतर्राष्ट्रीय दबाव में आकर फैसले नहीं लिए।

याद कीजिए, 2020 में गलवान घाटी संघर्ष के बाद भी मोदी ने चीन के साथ संबंधों को संतुलित रखा, लेकिन सीमा की रक्षा में कोई कोताही नहीं बरती। इसी क्रम में हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में मोदी की चीन यात्रा एक रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक थी। 30 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक टियांजिन में आयोजित इस सम्मेलन में मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की और सीमा विवादों पर चर्चा की। दोनों नेताओं ने ‘साझेदार, न कि प्रतिद्वंद्वी’ बनने का संकल्प लिया। यह यात्रा मोदी की पहली चीन यात्रा थी सात वर्षों में, और इसमें उन्होंने एससीओ के मंच से परोक्ष रूप से अमेरिका को संदेश दिया कि भारत बहुपक्षीय संगठनों में सक्रिय रहेगा और अपनी विदेश नीति को किसी एक शक्ति के इशारे पर नहीं चलाएगा। इस दौरान मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी मुलाकात की, जो ट्रंप के टैरिफ के संदर्भ में एक मजबूत संकेत था।

चीन यात्रा से लौटते ही ट्रंप के रुख में बदलाव आया। चार दिनों के भीतर दूसरी बार, ट्रंप ने ट्रूथ सोशल पर पोस्ट कर भारत-अमेरिका संबंधों की सराहना की। उन्होंने लिखा, “मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि भारत और अमेरिका दोनों देशों के बीच व्यापार बाधाओं को दूर करने के लिए बातचीत जारी रखे हुए हैं। मैं आने वाले हफ्तों में अपने बहुत अच्छे दोस्त, प्रधानमंत्री मोदी से बात करने के लिए उत्सुक हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे दोनों महान देशों के लिए एक सफल निष्कर्ष पर पहुंचने में कोई कठिनाई नहीं होगी।” यह पोस्ट ट्रंप के पहले के आक्रामक बयानों से बिलकुल विपरीत थी। अमेरिकी मीडिया, जैसे न्यूयॉर्क टाइम्स और अल जजीरा, ने रिपोर्ट किया कि ट्रंप कई बार मोदी से संपर्क करने की कोशिश कर चुके थे, लेकिन भारत ने जल्दबाजी नहीं दिखाई। यह मोदी की रणनीति का कमाल है कि उन्होंने दबाव को अनदेखा कर भारत की स्थिति मजबूत की।

प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप के इस संदेश का जवाब अपने विशिष्ट अंदाज में दिया। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर उन्होंने लिखा, “भारत और अमेरिका करीबी दोस्त और नेचुरल पार्टनर्स हैं। मुझे यकीन है कि हमारी ट्रेड बातचीत से भारत-अमेरिका साझेदारी की असीमित संभावनाओं के रास्ते खुलेंगे। हमारी टीमें जल्द से जल्द इस दिशा में चर्चा करने पर काम कर रही हैं। मैं राष्ट्रपति ट्रंप से बात करने को लेकर भी आशान्वित हूं। हम दोनों देशों के लोगों के लिए सुनहरे और अधिक समृद्ध भविष्य बनाने की दिशा में काम करेंगे।” यह जवाब न केवल सकारात्मक था, बल्कि भारत की मजबूती को रेखांकित करता था। मोदी ने स्पष्ट किया कि साझेदारी बराबरी की होगी, न कि एकतरफा।

अब सवाल यह है कि ट्रंप का यह यू-टर्न क्यों? इसका जवाब भारत की आर्थिक प्रगति में छिपा है। मोदी सरकार के तहत भारत की जीडीपी वृद्धि दर 2025 में 7.5 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद है, जो दुनिया में सबसे तेज है। निर्यात में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स में। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी योजनाओं ने भारत को वैश्विक सप्लाई चेन का महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया। ट्रंप जानते हैं कि भारत के बिना अमेरिका का व्यापारिक घाटा और बढ़ सकता है। रिसर्च से पता चलता है कि 2024-25 में भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार 200 अरब डॉलर से अधिक हो गया है। ट्रंप ने यूरोपीय संघ को भी कहा कि भारत और चीन पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाओ रूसी तेल के लिए, लेकिन अमेरिका के अलावा किसी भी देश ने ऐसा नहीं किया।

मोदी सरकार की विदेश नीति का मूल है: संतुलित कूटनीति, जिसमें चीन, रूस, अमेरिका, यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया सभी के साथ संवाद और सहयोग बनाए रखना है। एससीओ सम्मेलन, ब्रिक्स बैठक, क्वाड और जी20 – इन मंचों पर भारत की सक्रिय भागीदारी ने देश को केंद्र में ला खड़ा किया है। यह नीति इंगित करती है कि भारत न तो किसी ध्रुवीकरण का हिस्सा है, न ही किसी दबाव में काम करता है। चीन के साथ नजदीकी बढ़ती है तो अमेरिका के साथ दूरियाँ नहीं बढ़ने दी जातीं। भारत, एशिया और विश्व को नया राजनीतिक संतुलन देने का कार्य कर रहा है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी मोदी ने ‘हाउडी मोदी’ और ‘नमस्ते ट्रंप’ जैसे इवेंट्स से व्यक्तिगत संबंध बनाए, लेकिन राष्ट्रीय हितों से कभी समझौता नहीं किया। 

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की ताकत यह है कि उनकी विदेश नीति केवल शीर्ष स्तर की कूटनीति ही नहीं, आम नागरिक के हितों को भी ध्यान में रखती है। हर वैश्विक समझौते और नीति का आधार रहा है – देश के किसानों, उद्यमियों, छोटे व्यापारियों, युवाओं और महिलाओं को फायदा मिले, देश की आर्थिक, सामाजिक और सुरक्षा हितों की रक्षा हो। ऐसे निर्णायक नेतृत्व के चलते भारत ने विश्व मंच पर मजबूती हासिल की है और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में नागरिकों के भरोसे के साथ दुनिया को भारत की ताकत का एहसास कराया है।

यह घटनाक्रम भारत के युवाओं और उद्यमियों के लिए प्रेरणा है। मोदी ने साबित किया कि मजबूत इच्छाशक्ति से कोई भी चुनौती पार की जा सकती है। ट्रंप का बदलता रुख दर्शाता है कि भारत अब ‘फॉलोअर’ नहीं, बल्कि ‘ग्लोबल लीडर’ है। केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता है कि यह साझेदारी दोनों देशों के नागरिकों को लाभ पहुंचाएगी। लेकिन याद रखें, भारत प्रथम रहेगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भले ही दबाव बनाने के लिए कठोर कदम उठाए, लेकिन भारत की नीतिगत मजबूती के सामने उन्हें भी सम्मानजनक संवाद की राह अपनानी पड़ रही है। चार दिन के भीतर दो बार ‘फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट’ भेजना, भारत को ‘महान राष्ट्र’ और प्रधानमंत्री मोदी को ‘अच्छा मित्र’ बताना, यह दर्शाता है कि अमेरिका अब भारत की बढ़ती भूमिका का खुला स्वीकार कर रहा है।

आगे की राह में चुनौतियां हैं, जैसे जलवायु परिवर्तन, साइबर सिक्योरिटी और रक्षा सहयोग। लेकिन मोदी के नेतृत्व में भारत इनमें अवसर देखता है। एससीओ समिट में मोदी ने वैश्विक एकता पर जोर दिया, जो ट्रंप के अलगाववादी रुख से अलग है और भारत के साथ वैश्विक हित के लिए भी लाभकारी है।

अपनी मेहनत, नीति और क्षमता के दम पर प्रधानमंत्री मोदी ने यह साबित कर दिया है कि भारत अब किसी के दबाव में झुकने वाला नहीं, बल्कि विश्व मंच पर नई राजनीतिक और आर्थिक दिशा तय करने वाला है। कड़े टैरिफ या उत्तेजक बयानबाजी के बावजूद भारत का “भारत प्रथम” राष्ट्रवाद और प्रधानमंत्री मोदी की मजबूत इच्छाशक्ति ही देश की असली ताकत है।

भारत-अमेरिका संबंधों में चाहे जब भी कुंठा या तनाव आए, भारत ने सदा जागरूक, संतुलित और व्यावहारिक नीति अपनायी। आज वैश्विक स्तर पर भारत की आवाज निर्णायक है। अमेरिका सहित विश्व शक्तियाँ अब भारत को एक मजबूत, जिम्मेदार और आत्मनिर्भर साथी के रूप में स्वीकार कर रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने जिस दृढ़ इच्छाशक्ति से देश की नीति का मार्गदर्शन किया है, वह भारत के दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों और सम्मान की रक्षा करने की गारंटी है।

इस संपादकीय के माध्यम से यह स्पष्ट है कि आज मोदी-प्रधान भारत न केवल स्वदेशीय हितों का रक्षक है, बल्कि एक व्यासायिक और सामरिक वैश्विक नेतृत्व की पहचान भी बने हुए है। प्रधानमंत्री मोदी की “भारत प्रथम” की इच्छाशक्ति का प्रभाव अब न केवल भारत के नागरिक, बल्कि वैश्विक नेता भी महसूस कर रहे हैं। आगामी समय में यह सिद्धांत भारतीय नीति-निर्माण को और अधिक दृढ़ता, आत्म-विश्वास एवं वैश्विक सशक्तिकरण की ओर ले जाएगा।

लेखक: अभय प्रताप सिंह, पत्रकार एवं राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विश्लेषक

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