हिमालय की गोद में बसे नेपाल में हाल ही में जो राजनीतिक भूचाल आया है, वह न केवल उस छोटे से राष्ट्र की दशा-दिशा को प्रभावित कर रहा है, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में लोकतंत्र की नाजुकता पर गहन चिंतन को आमंत्रित करता है। युवा प्रदर्शनकारियों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद की, जो जल्द ही एक बड़े विद्रोह में तब्दील हो गई। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा, संसद भवन में आग लगा दी गई, और सेना को सड़कों पर उतरना पड़ा ताकि व्यवस्था बहाल हो सके। इन झड़पों में कम से कम 30 लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए हैं।
नेपाल की सड़कों पर हिंसा, सत्ता के खिलाफ विद्रोह और जन असंतोष की आग यह साबित करती है कि जब शासक जनता का विश्वास खो देते हैं तो हालात कितने भयावह हो सकते हैं। लेकिन नेपाल की इस त्रासदी को देखकर भारत के अर्बन नक्सली, खान मार्केट गैंग, लश्कर मीडिया और INDI गठबंधन जैसे विपक्षी गुट अपनी आंखों में लार टपकाते हुए यह सोच रहे हैं कि शायद भारत में भी ऐसा कुछ हो सकता है। वे तरह-तरह के नैरेटिव गढ़कर यह माहौल बनाने की कोशिश करते हैं कि भारत की जनता भी सत्ता से बगावत करेगी और सड़कों पर अराजकता फैलाई जा सकेगी, ठीक उसी तरह जैसे नेपाल या श्रीलंका या बांग्लादेश में हुआ।
यह सोचना ही उनकी सबसे बड़ी भूल है। भारत वह भूमि है जहां लोकतंत्र केवल एक व्यवस्था नहीं बल्कि सांस्कृतिक आस्था है। यहां संसद को लोकतंत्र का मंदिर माना जाता है और भारत मां को पूजनीय स्वरूप। ऐसे में कोई भी शक्ति यदि इस मंदिर की गरिमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास करेगी तो सबसे पहले भारत की राष्ट्रवादी जनता ही चट्टान बनकर उसका प्रतिरोध करेगी।
श्रीलंका में आर्थिक संकट ने महिंदा राजपक्षे और गोटबाया राजपक्षे की सत्ता को गिरा दिया। बांग्लादेश में विपक्षी हिंसा ने शेख हसीना सरकार को गहरे संकट में डाला। म्यांमार में तो सेना ने सीधे लोकतंत्र को ही कुचल दिया। इन घटनाओं ने तथाकथित लिबरल गिरोह, अर्बन नक्सलियों और भारत के विपक्षी गठबंधन को उम्मीद दी है कि भारत में भी वैसा ही परिदृश्य बन सकता है।
आज खान मार्केट गैंग और लश्कर मीडिया का एक वर्ग यह नैरेटिव बनाने में जुटा है कि “नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में जब सत्ता विरोधी आंदोलन सफल हो सकते हैं, तो भारत में क्यों नहीं?” सोशल मीडिया पर ट्रेंड होते स्लोगन “India When?” इसी हसरत को जाहिर करते हैं। भारत विरोधी तत्व भारत में भी ऐसी ही अराजकता की कल्पना कर रहे हैं, जहां विपक्षी नेता संसद और प्रधानमंत्री आवास पर हमला बोलकर सत्ता हथियाने का सपना देखते हैं। वे सोशल मीडिया पर “भारत कब?” जैसे सवाल उठाते हैं, मानो नेपाल की हिंसा भारत के लिए एक आदर्श हो।
लेकिन क्या वे वास्तव में भारत की मिट्टी को समझते हैं? यह सोच न केवल अव्यावहारिक है बल्कि भारत की लोकतांत्रिक शक्ति को कमतर आंकने की मूर्खता भी है। वे भूल जाते हैं कि भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा और मजबूत है, जहां जनता की आवाज चुनावों से निकलती है, न कि सड़कों पर हिंसा से? भारत नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार या बांग्लादेश नहीं है और न ही यहां का राजनीतिक परिदृश्य वैसा है और न ही यहां शेख हसीना, राजपक्षे या ओली हैं बल्कि यहां नरेंद्र मोदी हैं जिनके साथ भारत की जनता तनकर खड़ी है।
अब सवाल यह उठता है कि भारत में नेपाल जैसा तख्तापलट क्यों संभव नहीं है तो इसके 4 कारण है। नेपाल में तख्तापलट के 4 प्रमुख कारण थे: भ्रष्टाचार, नेपोकिड्स, सोशल मीडिया बैन और सत्ता को जनता का समर्थन न होना। भ्रष्टाचार की बात करें तो नेपाल में सत्ता की बुनियाद भ्रष्टाचार पर टिकी थी, जहां शासक खुद आरोपों से घिरे थे। लेकिन भारत में स्थिति एकदम विपरीत है। भारत में विपक्षी दल भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे नजर आते हैं। लगभग हर प्रमुख विपक्षी नेता या तो जेल में है या जमानत पर। उदाहरण के लिए, कांग्रेस के प्रमुख चेहरे राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर हैं। अदालत से सजा मिलते ही उनकी राजनीति पर पूर्ण विराम लग सकता है। अन्य क्षेत्रीय दलों में भी यही हाल है। भारत में विपक्ष ही भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुका है।
विपक्ष की सबसे बड़ी समस्या यही है कि वह नैतिकता और ईमानदारी की लड़ाई लड़ने की क्षमता ही खो चुका है। यही कारण है कि नेपाल जैसे हालात भारत में बन ही नहीं सकते क्योंकि यहां जनता जानती है कि विपक्ष सत्ता पाने के लिए नहीं बल्कि भ्रष्टाचार छिपाने के लिए संघर्ष कर रहा है। इसके उलट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप मजाक में भी नहीं लगाया जा सकता। उनका जीवन और राजनीति जनता के बीच साफ और पारदर्शी है। यही वह नैतिक बढ़त है जो नेपाल के शासकों में नहीं थी।
दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु परिवारवाद या नेपोकिड्स है। नेपाल में सत्ताधारियों के परिवार के सदस्यों की अय्याशी और विशेषाधिकार जनता की आंखों में चुभते थे। लेकिन भारत में मोदी सरकार इससे कोसों दूर है। प्रधानमंत्री मोदी का कोई परिवार राजनीति में सक्रिय नहीं है बल्कि उनके लिए पूरा देश ही परिवार है। उनके परिवार के सदस्य सत्ता का कोई लाभ नहीं उठाते। इसके विपरीत, विपक्षी दल परिवारवाद की गिरफ्त में हैं। कांग्रेस से लेकर अन्य क्षेत्रीय पार्टियां आरजेडी, डीएमके, तृणमूल, सपा, बसपा, शिवसेना UBT, NCPSP, NC, PDP सभी में प्रमुख पद परिवार के सदस्यों के पास हैं। यह नेपोटिज्म विपक्ष को कमजोर बनाता है, और अगर नेपाल जैसी क्रांति की कोशिश हुई तो सबसे पहले विपक्ष ही इसका शिकार बनेगा। जनता परिवारवाद से त्रस्त है, और मोदी की छवि एक ऐसे नेता की है जो इससे परे है। यह भारत को स्थिर बनाता है, जहां सत्ता व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रहित के लिए है। नरेंद्र मोदी का जीवन उदाहरण है कि बिना वंश-परंपरा के, बिना किसी राजनीतिक कुंडली के मेहनत और जनता के विश्वास से कैसे देश का नेतृत्व किया जा सकता है। यही अंतर नेपाल जैसी स्थिति को भारत में दोहराए जाने से रोकता है।
तीसरा था सोशल मीडिया का मुद्दा। नेपाल में सरकार ने सोशल मीडिया पर बैन लगाकर अपनी कब्र खुद खोदी, क्योंकि इससे युवाओं का गुस्सा और बढ़ गया। लेकिन भारत में मोदी सरकार सोशल मीडिया को अपनी ताकत मानती है। यह प्लेटफॉर्म विपक्षी नैरेटिव को ध्वस्त करता है, सच्चाई को सामने लाता है। सरकार कभी इसे बैन करने की सोच भी नहीं सकती, क्योंकि यह जनता से जुड़ने का माध्यम है। मोदी सरकार ने डिजिटल इंडिया के माध्यम से सोशल मीडिया को सशक्त किया है, जो नेपाल जैसी गलती से बचाता है। विपक्षी दलों और अर्बन नक्सलियों की सबसे बड़ी परेशानी यही है कि मोदीविरोधी कथानक सोशल मीडिया पर टिक नहीं पाते। मोदी सरकार जानती है कि सोशल मीडिया राष्ट्रवादियों की ताकत है। यही कारण है कि विपक्ष के झूठे नैरेटिव वहीं धराशायी हो जाते हैं। भारत की डिजिटल लोकतांत्रिक संरचना भारत विरोधियों के भ्रमजाल को टिकने ही नहीं देती।
चौथा और सबसे महत्वपूर्ण, सत्ता को जनता का समर्थन। नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में जब सत्ता के खिलाफ हिंसा हुई, तो जनता सड़कों पर सत्ता के पक्ष में नहीं आई। लेकिन भारत में स्थिति अलग है। यहां मोदी सरकार को अपार जनसमर्थन है। अगर विपक्ष नेपाल से प्रेरणा लेकर संसद या प्रधानमंत्री आवास पर हमला करने की कोशिश करेगा, तो राष्ट्रवादी जनता खुद सड़कों पर उतर आएगी। भारत दुनिया का पहला देश बनेगा जहां चुनी हुई सरकार के खिलाफ तख्तापलट की साजिश को जनता ने ही कुचल दिया। मोदी समर्थक ऐसी कोशिश का इंतजार कर रहे हैं, ताकि देशविरोधी तत्वों को हमेशा के लिए नेस्तनाबूद कर सकें।
जब विपक्ष ने शाहीन बाग, किसान आंदोलन या मणिपुर जैसी घटनाओं के बहाने देश को अस्थिर करने की कोशिश की, तो मोदी सरकार के धैर्य और जनता के राष्ट्रवादी भाव ने इन सभी साजिशों को नाकाम कर दिया। सोचिए, अगर नेपाल या बांग्लादेश जैसी तस्वीर भारत में उभरती और विपक्ष संसद या प्रधानमंत्री आवास पर चढ़ाई करने आया, तो क्या होगा? भारत की जनता खुद लाठियां लेकर उन ताकतों को सड़कों पर खदेड़ देगी। यह वह जनता है जिसके भीतर राष्ट्रवाद का भाव किसी आंदोलन से नहीं बल्कि संस्कृति और परंपरा से उपजा है।
भारत की विपक्षी राजनीति का दुर्भाग्य यह है कि इसका नेतृत्व करने वाले राहुल गांधी अपनी नैतिक विश्वसनीयता खो चुके हैं। जिस पीपीटी को दिखाकर उन्होंने हाल में वोट चोरी का आरोप लगाया, वह भारत में नहीं बल्कि म्यांमार में तैयार हुई बताई जाती है। वही म्यांमार जिसने खुद सैन्य तख्तापलट झेला और जहां से भारत में घुसपैठ और अस्थिरता की कोशिशें होती हैं। सवाल यह है कि भारत विरोधी ताकतें किसके माध्यम से इस देश के लोकतंत्र को अस्थिर करना चाहती हैं? राहुल गांधी के छिपे विदेशी दौरे, विदेशों से मिली मंचों पर भारत के लोकतंत्र की निंदा और पारिवारिक नेपोटिज़्म उन्हें भारत विरोधी टूलकिट का हिस्सा साबित करते हैं। यही कारण है कि अगर नेपाल जैसी परिस्थितियां भारत में पैदा करने की कोशिश होगी तो सबसे पहला प्रहार जनता राहुल गांधी और विपक्ष पर ही करेगी।
किसान आंदोलन के समय भी विदेश से नैरेटिव चलाकर भारत को बदनाम करने की कोशिश हुई थी। लश्कर मीडिया और खान मार्केट गैंग यही कहते रहते हैं कि म्यांमार, श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल जैसी स्थिति भारत में बन रही है। लेकिन राहुल गांधी क्या भारत के विपक्ष के नेता हैं या भारत विरोधी टूलकिट के प्रमोटर? उनकी इमेज सवालों के घेरे में है। राहुल गांधी द्वारा अमेरिका जाकर भारत के लोकतंत्र में दखल की मांग करना, मंच से प्रधानमंत्री की मां को अपशब्द, छिपे विदेशी दौरे, और नागरिकता पर बहस राहुल गांधी के नेतृत्व पर ही सवाल खड़े कर देते हैं। ऐसे में उनके समर्थक नेपाल जैसी अराजकता फैलाने की कोशिश करेंगे तो राष्ट्रवादी जनता इसे शुरू होने से पहले कुचल देगी, वहीं इसके उलट हिंदू राष्ट्रवादी नेता की छवि, भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को पप्रधानता देना, विकास के साथ विरासत का संरक्षण करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जनता में लोकप्रिय बनाते हैं और जनता उनके साथ हर कदम पर खड़ी नजर आती है।
जो लोग कहते हैं कि श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल में हुआ, भारत में कब होगा? उन्हें चुनौती है—शुरू करके दिखाओ। लेकिन वे जानते हैं कि पुलिस और सुरक्षा बल तो कार्रवाई करेंगे ही, राष्ट्रवादी जनता उनका भूत बना देगी। भारत की जनता संसद पर चढ़ाई या प्रधानमंत्री आवास को नुकसान पहुंचाने के सपनों को सड़कों पर कुचल देगी। यह भारत है, नेपाल नहीं। यहां विपक्ष भ्रष्टाचार और परिवारवाद का शिकार है, जबकि सत्ता राष्ट्रहित पर टिकी है। नेपाल जैसी क्रांति की कोशिश विपक्ष का खात्मा कर देगी और मोदी को अजेय बना देगी।
यहां यह समझना आवश्यक है कि भारत की जनता संसद को लोकतंत्र का मंदिर मानती है। इस मंदिर को नुकसान पहुंचाने का प्रयास जनता बर्दाश्त नहीं करेगी। विपक्षी दल अगर नेपाल जैसा तख्तापलट लाने का प्रयास करेंगे तो पुलिस और सुरक्षाबलों के अलावा राष्ट्रवादी जनता भी उन्हें सड़क पर घसीटने से पीछे नहीं हटेगी। भारत के नागरिकों के लिए देश की अस्मिता सर्वोपरि है। यहां संसद को जलाने का सपना देखने वालों को भारत की जनता ही ऐसा जवाब देगी कि उनका सपना हमेशा के लिए बुरे स्वप्न में बदल जाएगा। भारत कभी नेपाल नहीं बन सकता, क्योंकि यहां सत्ता की बुनियाद ईमानदारी, राष्ट्रवाद और जनसमर्थन पर टिकी है।