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जगदीप धनखड़ क्या धोखेबाज निकले ? विपक्ष की पिच पर खेल रहे थे ?

21 जुलाई को रात 9 बजे के लगभग देश की सियासत में खलबली मच गई. अचानक खबर आई कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दे दिया है. इससे भी अधिक चौंकाने वाली खबर यह थी कि जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर सबसे दुःख कांग्रेस और उसके INDI गठबंधन द्वारा मनाया जा रहा था, जो 4 महीने पहले तक धनखड़ साहब को उपराष्ट्रपति पद से हटाने पर आमादा थे जबकि भाजपा ने धनखड़ साहब के इस्तीफे पर चुप्पी साध ली, जिसने धनखड़ साहब को उपराष्ट्रपति बनाया था.

सबके मन में एक ही सवाल था कि आखिर जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा क्यों दिया ? इससे भी बड़ा सवाल ये था कि जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर भाजपा और PM मोदी चुप क्यों हैं ? लेकिन एक सवाल और था जो सभी जेहन में था कि आखिर कांग्रेस पार्टी को जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से समस्या क्यों हो गई. कांग्रेस को तो खुश होना चाहिए था क्योंकि कांग्रेस हमेशा से चाहती थी कि जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद से हटा दिया जाए. लेकिन जब धनखड़ साहब ने इस्तीफा दिया तो कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि PM मोदी को जगदीप धनखड़ को इस्तीफा वापस लेने के लिए मनाना चाहिए. अब जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के पीछे की जो कहानी सामने आ रही है, वो सनसनीखेज है और चौंकाने वाली भी है.

पीछे से विपक्ष की पिच पर खेलने लगे थे धनखड़ साहब ?

केंद्र सरकार जस्टिस वर्मा के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग लेकर आई. केंद्र सरकार की योजना थी कि लोकसभा स्पीकर की अगुवाई में जस्टिस वर्मा को हटाने की प्रक्रिया होगी और ये कार्य केंद्र सरकार करेगी.

तभी राज्यसभा में वो हुआ, जिसने भाजपा, केंद्र सरकार को हिला दिया. VP धनखड़ साहब ने अचानक से राज्यसभा में जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ विपक्ष द्वारा लाए गए महाभियोग के नोटिस को स्वीकार कर लिया. इस नोटिस पर 63 सांसदों के साइन थे और ये सभी सांसद विपक्ष के थे. धनखड़ साहब ने ये सब तब किया, जब राज्यसभा में नेता सदन जेपी नड्डा, संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजीजू और वरिष्ठ मंत्री अनुपस्थित थे. सिर्फ क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और जी किशन रेड्डी थे.

जैसे ही धनखड़ साहब ने विपक्ष का प्रस्ताव स्वीकार किया, मेघवाल और रेड्डी के चेहरे की हवाइयां उड़ गई. दरअसल VP साहब ने केंद्र को बताए बिना विपक्ष का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था. केंद्र सरकार जहां  लोकसभा में प्रस्ताव लाकर जस्टिस वर्मा को हटाने की प्रक्रिया का नेतृत्व कर न्यायिक सुधार की बड़ी मिसाल पेश करने जा रही थी, तभी धनखड़ साहब ने राज्यसभा के माध्यम से इसमें विपक्ष की भी एंट्री करा दी. केंद्र के सूत्रों की मानें तो ये सब जस्टिस वर्मा को बचाने की योजना का हिस्सा था क्योंकि कपिल सिब्बल सहित विपक्ष के कई नेता जस्टिस वर्मा को हटाने के विरोध में बोल चुके थे. कपिल सिब्बल तो सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा के पक्ष में वकील भी हैं.

जहा जा रहा है कि जो धनखड़ साहब मीडिया के सामने न्यायिक गंदगी के खिलाफ हुंकार भर रहे थे, वही धनखड़ साहब राज्यसभा में विपक्ष के एजेंडे को बढ़ाकर जस्टिस वर्मा को बचाने की प्रक्रिया का हिस्सा बन गए थे.

बात सिर्फ जस्टिस वर्मा तक ही सीमित नहीं थी बल्कि इससे भी और आगे चली गई थी. विपक्ष प्रयागराज हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर यादव को हटाने के लिए महाभियोग लाने जा रहा था, जिन्होंने VHP के कार्यक्रम में कहा था कि यह देश कठमुल्लों से नहीं चलेगा. VP धनखड़ साहब विपक्ष के इस प्रस्ताव को स्वीकार करने को तैयार हो गए थे. मंगलवार को विपक्ष का यह प्रस्ताव आना था. केंद्र की इसकी कोई जानकारी नहीं थी

इसका अर्थ यह हुआ कि जो केंद्र सरकार लोकसभा के माध्यम से जस्टिस वर्मा को हटाने जा रही थी, धनखड़ साहब ने राज्यसभा के माध्यम से उसमें विपक्ष को शामिल कर जस्टिस वर्मा को बचाने की पिच तैयार कर दी थी. वहीं जो केंद्र सरकार जस्टिस शेखर यादव को बचाने में लगी थी, धनखड़ साहब केंद्र को बताए बिना विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार कर जस्टिस यादव को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने वाले थे

अर्थात धनखड़ साहब विपक्ष की उस प्रक्रिया का हिस्सा बन गए थे, जिसके तहत नोटों के बोरे के मामले में फंसे जस्टिस वर्मा को बचाया जाना था और संघ के आनुवांशिक संगठन VHP के मंच से हिंदुत्व की हुंकार भरने वाले जस्टिस शेखर यादव को हटाया जाना था. और ये उस भाजपा की सरकार में किए जाने का षड्यंत्र था, जो भाजपा RSS का ही आनुवंशिक संगठन है

सोचिए कि ये RSS, BJP, VHP और PM मोदी के लिए कितनी शर्म की बात होती कि VHP के मंच से हिंदुत्व की बात करने वाले जज को BJP की सरकार में विपक्ष द्वारा BJP के बनाए उपराष्ट्रपति के सहयोग से हटा दिया जाता ? BJP सूत्रों का कहना है कि यही कारण था कि विपक्ष पिछले दो-तीन महीने से आक्रामक था क्योंकि राज्यसभा के सभापति शायद उनके अपने हो चुके थे. संभवतः विपक्ष की योजना थी कि राज्यसभा में केंद्र सरकार के बिल रोके जाएंगे, सरकार को राष्ट्र के सामने शर्मशार किया जाएगा.

सरकार को समय रहते इसकी भनक लग गई. जब VP साहब ने राज्यसभा में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया तो BJP और केंद्र सरकार हरकत में आ गई. राजनाथ सिंह के कार्यालय में 10-10 के ग्रुप में NDA के सांसद बुलाए गए और कोरे कागज पर साइन कराए. कहा जा रहा है ये साइन उस स्थिति के लिए थे कि अगर धनखड़ साहब नहीं माने तो उन्हें सरकार महाभियोग लाकर हटा देगी.

इस बीच जगदीप धनखड़ ने शाम साढ़े 4 बजे बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक बुलाई. विपक्ष के नेता इस बैठक में पहुंचे लेकिन राज्यसभा में नेता सदन जेपी नड्डा और किरेन रिजीजू इस बैठक में नहीं पहुंचे. आमतौर पर BAC की बैठक दिन में एक बार होती है और सोमवार को दोपहर साढ़े 12 बजे ये बैठक हो चुकी थी. इसके बावजूद धनखड़ साहब ने शाम को बैठक क्यों बुलाई, इसका अंदाजा सरकार को भी नहीं था. नतीजा ये हुआ कि जेपी नड्डा और किरेन रिजीजू इस बैठक में नहीं पहुंचे और जगदीप धनखड़ ने इसे अपने बहिष्कार के तौर पर लिया.

चर्चा है कि इसके बाद रात 8 बजे के बाद धनखड़ साहब को एक कॉल गया. कॉल पर कौन था, इसकी जानकारी जानकारी सामने नहीं आई है. लेकिन कहा जा रहा है कि ये कॉल हॉट थी और इस कॉल पर गर्मागर्म बहस हुई. इसी कॉल पर धनखड़ साहब को संदेश दिया गया कि वो सरकार की लाइन और एजेंडे के खिलाफ जा रहा हैं. धनखड़ साहब को ये भी बताया गया कि सांसदों के साइन हो चुके हैं. अब आपको तय करना है. इसके बाद कॉल कट हुआ और धनखड़ साहब ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफ़ा दे दिया.

जो विपक्ष धनखड़ साहब को झुकी कमर, संघी जाट, लोकतंत्र का भक्षक बता रहा था, उनके इस्तीफे पर वही विपक्ष उन्हें लोकतंत्र का रक्षक बताते हुए रुदन कर रहा है. जिन PM मोदी ने हामिद अंसारी जैसे PFI समर्थक उपराष्ट्रपति की विदाई पर उनके सम्मान में भाषण दिया था, ग़ुलाम नबी आज़ाद की विदाई पर भावुक हो गए थे, उन PM मोदी ने धनखड़ साहब की विदाई पर सिर्फ़ ये लिखा कि उन्हें बहुत से बड़े पदों पर काम करने का मौक़ा मिला है, वो जल्दी स्वस्थ हों. PM ने न तो धनखड़ साहब के योगदान की सराहना की और न कुछ ज़्यादा लिखा. PM के अलावा BJP के किसी नेता ने धनखड़ साहब के इस्तीफे पर एक शब्द तक नहीं लिखा है.

इससे आप समझ सकते हैं कि केंद्र सरकार धनखड़ साहब से पीछा छूटने पर राहत महसूस कर रही है क्योंकि केंद्र को लगता है कि धनखड़ साहब तो शायद धोखा दे रहे थे. विपक्ष अभी धनखड़ साहब के इस्तीफे से सकते में है. ऐसा लग रहा है कि जैसे विपक्ष का एजेंडा फेल हो गया और भाजपा व उसके सहयोगी दल इस पर पूरी तरह चुप्पी साध गए हैं.

अब भाजपा को शायद समझ आ जाए कि जब किसी नेता को निर्णायक जिम्मेदारी दी जाए तो उसका बैकग्राउंड RSS का हो न कि किराए का आयातित नेता भाजपा ने दूसरे दलों से जितने भी आयातित किए हैं, उसमें 80% से अधिक या तो नकारा हैं या फिर एक समय पर धोखा दे गए हैं. यहां ध्यान दिया जाए कि मैंने विपक्ष से भाजपा में आए हुए सभी नेताओं की बात नहीं की है बल्कि 80% नेताओं की बात की है.

लेखक: अभय प्रताप सिंह, पत्रकार

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